गर्मी की शुरुआत के साथ ही हरिद्वार-ऋषिकेश, देहरादून-मसूरी में पर्यटकों की भीड़ चारों तरफ नजर आने लगी है। खासतौर से शनिवार-इतवार में यह भीड़ स्थानीय लोगों की संख्या को टक्कर देती है। यह बेतहाशा भीड़ अप्रैल से जुलाई तक के चार महीनों में ऐसे टूट पड़ती है, जैसे साल के बाकी बचे महीनों में यहां घूमने-फिरने-देखने लायक चीजों का अकाल पड़ जाएगा। यदि आप थोड़े भी जागरुक होकर अपनी यात्राओं को आनंददायक और उद्देश्यपरक बनाना चाहते हैं तो फिर कम से कम इन चार महीनों में ऋषिकेश-हरिद्वार या देहरादून-मसूरी आने से बचना चाहिए। मेरी यह सलाह टूरिज्म से जुड़े उन पोर्टल्स और यूट्यूब चैनलों की राय से पूरी तरह अलग है जहां आपको बताया जाता है कि अच्छे मौसम, सुखद माहौल, रमणनीय प्राकृतिक वातावरण और गंगा स्नान के लिए ये ही सबसे बेहतरीन वक्त है। सलाह ये ही है कि इन सलाहों से बचिए।
मार्च में ज्यादातर जगहों पर बोर्ड परीक्षा खत्म हो चुकी होती हैं, गर्मी बढ़ने लगती है इसलिए ज्यादातर लोग मानसिक सुकून की तलाश में बाहर निकलते हैं। उत्तर भारतीयों के लिए धार्मिक दृष्टि से हरिद्वार और ऋषिकेश खासा पसंदीदा ठिकाना है, जबकि थोड़ा मौज मस्ती के लिए देहरादून और मसूरी आकर्षित करते हैं। इन शहरों के साथ बड़ी समस्या यह है कि अपने आकार में ये बहुत छोटे हैं और अचानक आने वाली भीड़ को बमुश्किल संभाल पाते हैं। न जाने क्यों लोगों में यह धारणा बैठ गई है कि इन जगहों पर गर्मियों में ही आना चाहिए। इसके चलते यात्रियों का सारा दबाव अप्रैल से लेकर जुलाई में कावड़ यात्रा संपन्न होने तक रहता है। साल के शेष महीनों में इन जगहों पर पर्यटक ढूंढने मुश्किल हो जाते हैं।
अब सवाल यह है कि इन चार महीना में ही क्यों नहीं आना चाहिए ? पहली बात यह कि यहां वर्ष के बाकी दिनों में भी मौसम लगभग अच्छा होता है। जनवरी में ठंड के समय में भी देहरादून, मसूरी और ऋषिकेश में धूप खिली होती है, जबकि उत्तर भारत कोहरे की चपेट में रहता है। इन जगहों पर कोई भी धार्मिक स्थान ऐसा नहीं है जो केदारनाथ या बदरीनाथ की तरह कुछ महीने के लिए बंद हो जाता हो। यहां सारी गतिविधियां पूरे वर्ष पर खुली होती हैं। इन चार महीनो में आने वाली भीड़ के चलते कई तरह के संकटों का सामना करना पड़ता है। पहला संकट आर्थिक है। सामान्य दिनों में जो होटल में डेढ़-दो हजार रुपए में मिल जाता है, इन दिनों उसकी दरें चार-पांच हजार तक पहुंच जाती हैं। यही हाल लोकल ट्रांसपोर्ट और टैक्सी सुविधाओं का रहता है। सरकार द्वारा निर्धारित दरों को इन दिनों भूल जाइए क्योंकि उसे लागू कराने की फिक्र किसी के पास नहीं है।
वस्तुतः पर्यटकों के काम आने वाली ऐसी कोई भी सुविधा नहीं होगी जिसके दाम दोगुने से ज्यादा ना हो जाते हों और यदि आप शनिवार, रविवार को आ रहे हैं तो फिर ये दाम किसी भी लेवल तक पहुंच सकते हैं। इन दिनों स्थिति यह है कि आप अपने शहर या कस्बे में फल, मिठाई और भोजन को जिस दर पर खरीदते होंगे, इस वक्त हरिद्वार, ऋषिकेश में उनकी दरें लगभग दोगुनी हो चुकी हैं। जैसे-जैसे यात्रा सीजन आगे बढ़ेगा, वैसे-वैसे ये दर बेहिसाब स्तर तक बढ़ती जाएंगी। आने वाले दिनों में चारधाम यात्रा आरंभ हो जाएगी, तब तीन महीने की अवधि 45 से 50 लाख लोग इन स्थानों से होकर गुजरेंगे और यहां रुकेंगे भी। अब आप अनुमान लगाइए कि 5 लाख की आबादी का हरिद्वार, 3 लाख की आबादी का ऋषिकेश और 8 लाख की आबादी का देहरादून एक समय में अपने यहां कितने पर्यटकों को संभाल सकता है!
छोटे-मोटे काम करने वाले स्थानीय लोग और पर्यटकों से संबंधित कारोबारी इस अवधि को एक बड़े अवसर के तौर पर देखते हैं। वजह, उन्हें पता है कि बाकी 8 महीनों में कोई विशेष बिजनेस नहीं होगा। पर्यटकों की यह भीड़ अपना चैन दांव पर लगाने के साथ-साथ इन शहरों में रहने वाले आम लोगों के लिए भी चुनौतीपूर्ण स्थितियां पैदा करती है। यदि ये पर्यटक सितंबर से मार्च के बीच की अवधि में अपनी सुविधा के अनुसार इन स्थानों का भ्रमण करें तो न केवल उनके लिए राहत की स्थिति होगी, बल्कि स्थानीय व्यापारियों को भी वर्ष भर काम मिल सकेगा और लूट जैसी स्थितियां पैदा नहीं होंगी जो कि इन चार महीनों के दौरान होती हैं।
यह ठीक है कि दिल्ली से हरिद्वार/देहरादून तक फोरलेन हाईवे बनने के बाद हर वक्त लगने वाले जाम से काफी हद तक राहत मिल गई है, लेकिन हरिद्वार से बरेली, लखनऊ की ओर जाने वाला राजमार्ग अब भी निर्माण की प्रक्रिया में है। इसके चलते अभी से जाम लगने लगा है। यही स्थिति चंडीगढ़, हरियाणा, पंजाब से हरिद्वार/देहरादून आने वालों को भी फेस करनी पड़ेगी क्योंकि दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेस-वे का निर्माण अपनी निर्धारित समय सीमा से पीछे चल रहा है और देहरादून के पहाड़ों में आकर अटका हुआ है। एक्सप्रेस-वे से हरिद्वार को जोड़ने का काम भी जल्द पूरा होता नहीं दिख रहा है। इसलिए यदि आप यहां आ रहे हैं तो मानसिक रूप से तैयारी करके आइए कि कई जगहों पर जाम में फंसना पड़ेगा।
वर्ष 2021 में हुए महाकुंभ के दौरान हरिद्वार में गंगा और उसकी उप धाराओं पर कई किलोमीटर लंबे घाट बना दिए गए हैं, लेकिन पर्यटकों का सारा जोर केवल हर की पौड़ी के आसपास के घाटों पर ही है। इस कारण भीड़ से पैदा होने वाली अवस्थाएं हर की पौड़ी के आसपास ज्यादा दिखाई देती हैं। स्थानीय प्रशासन कितनी भी घोषणाएं करे, कागजों पर कितनी भी व्यवस्थाएं बनाए, लेकिन हरिद्वार, ऋषिकेश के धार्मिक स्थलों के आसपास पर्यटकों को परेशानी से बचाने का कोई समुचित तंत्र आज तक विकसित नहीं हो पाया है।
ऋषिकेश शहर की स्थिति और भी दयनीय है। जिन मार्गो से चारधाम यात्रा का ट्रैफिक गुजरेगा, वे कई जगह पर तंग गलियों जैसी हैं। (यहां जाम और भीड़ से परेशान लोगों ने पिछले साल राज्य के एक कैबिनेट मंत्री से हाथापाई कर दी थी।) इस शहर में पार्किंग को लेकर बहुत सारी समस्याएं हैं। इसलिए अगर आप सुकून भरी यात्रा चाहते हैं और चारधाम यात्रा पर आने का संकल्प लिया हुआ है तो आपके लिए सबसे बेहतरीन वक्त सितंबर-अक्टूबर है। तब बारिश खत्म हो चुकी होती है, बारिश के दौरान खराब हुए रास्ते ठीक कराए जा चुके होते हैं, प्राकृतिक सौंदर्य अपने चरम पर होता है और अप्रैल से जुलाई के बीच की भीड़ अपने घरों को लौट चुकी होती है। सीजन के इस आखिरी समय में होटल मालिक, टैक्सी संचालक और सुविधाएं देने वाले स्थानीय लोग अपनी चार महीना की समस्याओं से पार आ चुके होते हैं इसलिए वह वक्त ज्यादा सहज, सुखद हो सकता है।
जिन्हें मसूरी, धनोल्टी आना है उनके लिए भी सितंबर-अक्टूबर-नवंबर से बेहतर कोई और वक्त नहीं होगा। मैदान में ऐसा माना जाता है कि इन महीनों में पहाड़ पर बहुत ठंड पड़ने लगती है, जबकि ऐसा नहीं है। जब पूरे उत्तर भारत में कोहरे में लिपटी कड़ाके की ठंड पड़ रही होती है, तब पहाड़ के शहर – कसबे खिली हुई धूप का आनंद ले रहे होते हैं। स्थानीय निवासी होने के कारण मेरी सलाह यही है कि यदि आपने इन्हीं दिनों आने की जिद न पाली हुई हो तो अपनी यात्रा को आने वाले सितंबर-अक्टूबर तक टाल दीजिए। आज की तुलना में उन महीनों में आपकी यात्रा कम खर्चीली, ज्यादा सुविधावाली और पर्याप्त मानसिक सुकून देने वाली होगी।
इसके बावजूद यदि आपको इन्हीं दिनों में आना है तो फिर भूल कर भी शनिवार-रविवार का कार्यक्रम मत बनाइए। जिन दिनों कोई स्नान अथवा पर्व-त्यौहार निर्धारित हो, उन दिनों में भी आने से बचिए क्योंकि स्थानीय प्रशासन का पूरा जोर इस बात पर होता है कि यहां आने वाली भीड़ को किसी तरह जल्दी से जल्दी बाहर ठेल दिया जाए। आप सामान्य दिनों में स्नान और मंदिर दर्शन के लिए आएंगे तो भी आपको गंगा नदी और उसके समीप स्थित धर्मस्थल वैसे ही पुण्य प्रतापी महसूस होंगे जैसे कि पर्व त्यौहार के दिन पर होते हैं। इन जगहों पर आने से पहले अपने किसी स्थानीय परिचित या मित्र से मशवरा कर सकते हैं कि रुकने, खाने-पीने और घूमने-फिरने के लिए किन ठिकानों पर जाएं, किन सुविधाओं का इस्तेमाल करें और किन चीजों से बचें। यह भी ध्यान रखें कि सब कुछ न तो इंटरनेट पर उपलब्ध है और न ही शौकिया तौर पर घूमने वाले लोगों के यूट्यूब चैनलों पर।
डाॅ. सुशील उपाध्याय
*भारतीय नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।*